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श्री गणपतिस्तोत्रम् | Ganesh Vandana | Ganpati Stotram |Adi Shankaracharya | Madhvi Madhukar Jha

श्री गणपतिस्तोत्रम् : श्रीमच्छ्ङ्कराचार्यविरचितं

सुवर्णवर्णसुन्दरं
जो स्वर्ण के समान उज्जवल वर्णसे सुन्दर प्रतीत होते हैं

सितैकदन्तबन्धुरं ।
एक ही श्वेत दंतके द्वारा मनोहर जान पड़ते हैं

गृहीतपाशकांकुशं
जिन्होंने हाथ में पाश और अंकुश ले रखा है

वरप्रदाभयप्रदम् ।।
जो वर तथा अभय प्रदान करने वाले हैं

चतुर्भुजं त्रिलोचनं
जिनके चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं

भुजंगमोपवीतिनं ।
जो सर्पमय यज्ञोपवीत धारण करते हैं

प्रफुल्लवारिजासनं
प्रफुल्ल कमल के आसान पर बैठते हैं

भजामि सिन्धुराननम् ॥ १ ॥
उन गजानन का मैं भजन करता हूँ

किरीटहारहारकुंडलं
जो किरीट हार और कुण्डलके साथ

प्रदीप्तबाहुभूषणं ।
उद्द्वीप्त बाहुभूषण धारण करते हैं

प्रचंडरत्नकंकणं
चमकीले रत्नों के कंगन पहनते हैं

प्रशोभिताङ्घ्रियष्टिकम् ।।
जिनके दण्डोपम चरण अत्यंत शोभाशाली हैं

प्रभातसूर्यसुन्दराम्बरद्वयप्रधारिणं
जो प्रभातकाल के सूर्यके समान सुन्दर और लाल दो वस्त्र धारण करते हैं

सरत्नहेमनूपुरप्रशोभिताङ्घ्रिपङ्कजम्॥ २ ॥
तथा जिनके युगल चरणवृंद रत्न जटिल सुवर्णनिर्मित नूपुरों से सुशोभित हैं
उन गणेशजी का मैं भजन करता हूँ

सुवर्णदण्डमण्डितप्रचण्डचारुचामरं ।
जिनका विशाल एवं मनोहर चंवर सुवर्णमय दण्डसे मंडित है

गृहप्रदेन्दुसुन्दरं
जो सकाम भक्तों को गृह सुख प्रदान करने वाले हैं

युगक्षणप्रमोदितम् ।।
एवं चन्द्रमा के समान सुन्दर हैं ,अति शीग्र प्रसन्न होने वाले हैं

कवीन्द्रचित्तरञ्जकं
जिनसे कवीश्वरों के चित्तका रंजन होता है

महाविपत्तिभञ्जकं ।
जो बड़ी बड़ी विपत्तियों का भंजन करनेवाले

षड्क्षरस्वरुपिणं भजे गजेंद्ररुपिणम् ।। ३ ।।
और षडक्षर मंत्रस्वरूप हैं

भजे गजेंद्ररुपिणम् ।। ३ ।।
उन गजराजरूपधारी गणेश का मैं भजन करता हूँ

विरिञ्चिविष्णुवन्दितं विरुपलोचनस्तुतं ।
ब्रह्मा और विष्णु जिनकी वंदना तथा विरूप लोचन शिव जिनकी स्तुति करते हैं

गिरीशदर्शनेच्छया समर्पितं पराम्बया ।।
जो गिरीश के दर्शनकी इक्षा से परा अम्बा पार्वती द्वारा समर्पित हैं

निरन्तरं सुरासुरै: सपुत्रवामलोचनैः ।
देवता और असुर अपने पुत्रों और वामलोचना पत्नियों के साथ

महामखेष्टकर्मसु स्मृतं भजामि तुन्दिलम् ॥ ४ ॥
बड़े बड़े यज्ञों तथा अभीष्ट कर्मों में निरंतर जिनका स्मरण करते हैं, उन तुन्दिल देवता गणेशजी का मैं भजन करता हूँ

मदौघलुब्धचञ्चलालिमञ्जुगुञ्जितारवं ।
जिनकी मदराशिपर लुभाये हुए चंचल भमर मंजू गुंजारव करते रहते हैं

प्रबुद्धचित्तरञ्जकं प्रमोदकर्णचालकम् ।।
जो ज्ञानी जनों के चित्त को आनंद प्रदान करने वाले हैं, अपने कानोंको सानंद हिलाया करते हैं

अनन्यभक्तिमानवं प्रचंडमुक्तिदायकं ।
और अनन्य भक्ति रखने वाले मनुष्यों को उत्कृष्ट मुक्ति देने वाले हैं

नमामि नित्यमादरेण वक्रतुण्डनायकम् ॥ ५ ॥
उन वक्रतुण्ड गणनायक का मैं प्रतिदिन आनंदपूर्वक भजन करता हूँ

दारिद्र्यविद्रावणमाशु कामदम् स्तोत्रं पठेदेतदजस्त्रमादरात् ॥ पुत्री कलत्रस्वजनेषु मैत्री पुमान्भवेदेकवरप्रसादात् ॥ ६

यह स्तोत्र दरिद्रता को अति शीघ्र भगानेवाला और अभीष्ट वस्तुको देनेवाली है |
जो निरंतर आदरपूर्वक इसका पाठ करेगा वह मनुष्य एकेश्वर गणेश की कृपा से पुत्रवान तथा स्त्री एवं स्वजनों के प्रति मित्रभावसे युक्त होगा |

॥ ॥ इति श्रीमच्छ्ङ्कराचार्यविरचितं श्रीगणपतिस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

CREDITS:
Song : Sri Ganpati Stotram (Traditional, Sanskrit)
Lyrics : Adi Shankaracharya
Singer : Madhvi Madhukar Jha
Music Label : SubhNir Productions
Music Director: Nikhil Bisht, Rajkumar

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